भूदान आंदोलन के नायक विनोबा भावे

img1120910038_1_111 सितम्बर—विनोबा भावे का जन्म—दिवस
विनोबा भावे जी का जन्म महाराष्ट्र के कोलाबा (अब रायगढ़) जिले के गागोडे गांव में 11 सितंबर 1895 को हुआ था। माता का नाम रुकमणि और पिता नरहरि शंभू राव थे। मां का भावे जी के जीवन पर गहरा प्रभाव था। वह भगवद्‍गीता, महाभारत और रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों से बहुत अधिक प्रभावित थे। कई पत्रों के अदान—प्रदान के बाद विनोबा भावे 7 जून 1916 को गांधीजी से मिलने गए। पांच वर्ष बाद 8 अप्रैल 1921 को भावे जी ने वर्धा स्थित गांधी आश्रम का कार्यभार संभाल लिया। उन्होंने वहां रहते हुए ‘महाराष्ट्र धर्म’ नाम की मासिक पत्रिका निकाली। इसमें उपनिषदों पर लेख होते थे। इस दौरान उनके और गांधीजी के बीच संबंध और मजबूत हुए तथा समाज के लिए रचनात्मक कार्यों में उनकी भागीदारी बढ़ती रही।
वर्ष 1932 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप में धुलिया में छह महीने के लिए जेल भेज दिया।
30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद उनके अनुयायी दिशा-निर्देश के लिए विनोबा भावे की ओर देख रहे थे। विनोबा ने सलाह दी कि अब देश ने स्वराज हासिल कर लिया है, ऐसे में गांधीवादियों का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना होना चाहिए, जो सर्वोदय के लिए समर्पित हो। तेलंगाना क्षेत्र में कम्युनिस्ट छात्र और कुछ गरीब ग्रामीणों ने छापामार गुट बना लिया था। यह गुट अमीर भूमि मालिकों की हत्या करके या उन्हें भगा कर तथा उनकी भूमि आपस में बांटकर जमीन पर ऐसे लोगों के एकाधिकार को तोड़ने का प्रयास कर रहा था। भावे ने वर्ष 1955 में अपने भूदान आंदोलन की शुरुआत ऐसे समय की जब देश में जमीन के लिए खूनी संघर्ष शुरू होने की आशंका थी। उनके जनआंदोलन को अपार जनसमर्थन मिला।
विनोबा भावे सामुदायिक नेतृत्व के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय रेमन मैगसाय पुरस्कार मिला था।
नवंबर 1982 में विनोबा भावे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्होंने भोजन और दवा नहीं लेने का निर्णय किया। उनका 15 नवंबर 1982 को निधन हो गया। उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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